अनचाही ज़िन्दगी के सफ़र में
हर दिन टूटती हूँ
हर लम्हा बिखरती है ख़ुशी
हर दिन टपकते हैं आंसू
हर रात अपनी पलकें पोंछ कर
नए दिन की सुबह देखने को
समेट कर उन टुकड़ों को
फिर उठती हूँ
गिरती हूँ तो बिन सहारे खुद संभलती हूँ
चल पड़ती हूँ राह पर
रास्ते में आते पत्थरों को ठोकर मार बढती हूँ
अकेली उड़ती पतंग सी
कटने का इंतज़ार करती हूँ !
Struggle to come out of own cocoon.....
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