Friday, December 30, 2022

एक राज़ हूँ मैं

नीले गगन सा 
बहती पवन सा 
अविस्मरणीय अनकहा सा 
एक ख्वाब हूँ मैं


कुछ उलझा सा हूँ मैं 
कुछ सुलझा हुआ सा 
अपरिचित अन्जाना 
समझ के पर बेहिसाब हूँ मैं


होठों पर मुस्कान लिए 
समक्ष हूँ दुनिया के 
दिल में ग़मों से भरपूर 
बस आईने में बेनकाब हूँ मैं


बड़बोला कभी हूँ 
गुमसुम कभी 
खिलखिलाता या बिलखता 
भावनाओं का इक सैलाब हूँ मैं


निरुत्तर सवालों सा 
इक मुश्किल पहेली सा 
खुद को समझने को 
बेताब हूँ मैं !